शीतलहर...

 * भारत के मैदानी इलाकों में दिसंबर-जनवरी के शीतकालीन महीनों में पूर्व दिशा से चलनेवाली हवाएँ शीतलहर या शीतलहरी कहलाती है

* ठंड के दिनों में इन हवाओं का चलना कष्टप्रद एवं कई बार जानलेवा होतीं हैं

* हिमालय की चोटियों पर होनेवाले तुषारपात से स्थिति और बदतर हो जाती है

* शीतलहर की ठंड से बचाव के लिए अलाव के आसपास लोगों को जगह-जगह बैठे देखा जा सकता है

* शीतलहर की चपेट में आये व्यक्तियों का शरीर ठण्डा पड जाता है व सुन्न सा हो जाता है, साथ ही नाडी की गति मन्द पडने लग जाती है

* कई बार रोगी के रोंये (रोंगटे) खडे हो जाते है तथा उसका श्वास तेज गति से चलने लगता है ऐसे में रोगी का समय पर इलाज व उसकी माकूल देखभाल आवश्यक है इस स्थिति में थोडी सी भी लापरवाही से अनहोनी हो सकती है

* शीतलहर से पीडत रोगी को तत्काल कम्बल व रजाई से ढकना चाहिए तथा पास में अंगीठी या हीटर आदि अलाव जलाने चाहिए किन्तु ऐसा करते समय यह ध्यान देना भी परमावश्यक है कि कमरें में शुद्ध व ताजा हवा का रास्ता कतई बंद न हो

* रोगी को गर्म पेय पदार्थ, गुड, चाय-कॉफी तथा चिकनाई आदि का उपयोग करवाना चाहिए यदि गर्म पानी की थैली उपलब्ध हो तो उससे सेक करना चाहिए

* रोगी का प्राथमिक उपचार करने के बाद पास के चिकित्सक को दिखाना चाहिए

* जनसाधारण को चाहिए कि शीतलहर के समय जहां तक हो सके घर से बाहर आवश्यक कार्यों हेतु दिन में निकले

* उपलब्ध गर्म व ऊनी कपडों को पहना जाना चाहिए

* रात्रि के समय यदि बाहर कार्य करने की नौबत आये तो अपने पास अंगीठी अथवा अनावश्यक लकडी व कूडा -करकट आदि को जलाकर अलाव तापने की व्यवस्था करनी चाहिए

* शीतलहर के समय ज्यादातर गर्म भोजन का सेवन करना चाहिए, गुड व तिल से बने पदार्थो का सेवन करने से ठंड का प्रतिरोध करने में आसानी रहती है

* सबसे अहम बात शारीरिक श्रम की है, यदि व्यक्ति रोजाना शारीरिक श्रम व व्यायाम सुबह के वक्त करे और तेल की मालिश करे तो शीतलहर से बचाव करने में सहायता मिलती है

* शीतलहर के कारण जिन व्यक्तियों के हाथों व पैरों की उगलियों में सूजन आ जाती है उन्हें धूम्रपान नहीं करना चाहिए

* शीतलहर से बचाव हेतु भिखारियों व भ्रमणशील जातियों को रात्रि के समय रैन बसेरों, सार्वजनिक भवनों व धर्मशालाओं में व्यतीत करना चाहिए

* खुले स्थानों पर रात्रि का समय व्यतीत करने में परहेज करना चाहिए

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