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दिल्ली में सत्ता बदली लेकिन आम आदमी पार्टी का '22कोप' जारी रहेगा. जानें कैसे?

दिल्ली की जिस जनता ने आम आदमी पार्टी और टीम केजरीवाल को जमीन से आसमान पर उठाया था, उसे 2025 के विधानसभा चुनाव में वापस जमीन पर पहुंचा दिया है. दो बार के क्लीन स्वीप के बाद इस करारी हार के अपने मायने हैं.जनता ने फीडबैक दिया है. जहां से चले थे- वहां से फिर अपनी यात्रा शुरू करो. धूप में जाओ, पसीने से नहाओ, सड़कों पर संघर्ष करो, आम लोगों की पीड़ा सुनो, उनकी वास्तविक आवाज बनो, नकारात्मकता बंद करो, शीशमहल में एसी की हवा बहुत खा ली- ज्यादा सुख सुविधा भोगने से इंसान के शरीर की इम्युनिटी कम होने लगती है. उधर करारी हार के बाद पूर्व सीएम और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सोशल मीडिया पर आकर यह संकेत भी दे दिया है कि सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के साथ-साथ जनता के दुख-सुख के साथ जुड़े रहेंगे, अपनी समाज सेवा जारी रखेंगे.

स्पेशल रिपोर्ट: पवन विश्वकर्मा, 
स्टेट हेड, 
उत्तर प्रदेश 

मतलब साफ है कि दिल्ली का असली दंगल सत्ता परिवर्तन के बाद शुरू होने वाला है. आने वाले समय में आम आदमी पार्टी और बीजेपी की लड़ाई गहराने वाली है. सड़कों पर आंदोलन के दिन लौटने वाले हैं. याद कीजिए अरविंद केजरीवाल अक्सर चुनावी मंचों पर बड़ी साफगोई से मुनादी किया करते थे- दिल्लीवालो, अगर हमारा काम पसंद ना आए तो हमें वोट मत करना. इत्तेफाक देखिए कि जनता ने वह आवाज सुन ली और अपना फैसला भी सुना दिया. पार्टी 22 सीटों पर ही नहीं सिमटी बल्कि दिग्गज चेहरों में खुद अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और सौरभ भारद्वाज सदन में पहुंचने से भी वंचित रह गए. बीजेपी तकरीबन 27 सालों से दिल्ली की सत्ता से दूर थी, लिहाजा पार्टी को जश्न को जश्न मनाने का पूरा अधिकार है.

आप की सिर्फ सीटें घटीं, जनाधार नहीं ढहा

अब सवाल है कि आगे क्या होगा? कयास तरह-तरह के लगाए जा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न खड़े किये जा रहे हैं. हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगी. क्योंकि देश में तमाम छोटे-छोटे दल सत्ता से दूर हैं और अपने-अपने अस्तित्व बचा पाने में कामयाब हैं, इनमें मायावती की बहुजन समाज पार्टी को भी गिन सकते हैं. आम आदमी पार्टी खत्म हो जाएगी, ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता. फिलहाल एक अलग राज्य पंजाब में पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार चल रही है. वहीं आम आदमी पार्टी दिल्ली की राजनीति में फिलहाल ना तो बहुत कमजोर है और ना ही उसका जनाधार बहुत खिसका है. आप की सरकार में दिल्ली विधानसभा के सदन में मजूबत विपक्ष नहीं थी. विपक्ष के नाम पर 2015 में बीजेपी के 3 तो 2020 में बीजेपी के 8 विधायक ही होते थे, लेकिन इस बार 22 विधायकों की संख्या विपक्ष की भूमिका निभाएगी.

गौर करने वाली बात ये है कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी को 48 सीटें मिलीं लेकिन बारीकी से देखिये तो जनता ने पार्टी को वैसा बहुमत नहीं दिया है, जो आम आदमी पार्टी को साल 2015 या उसके बाद 2020 में मिला था. वह एकतरफा चुनाव था. इस बार बीजेपी को एकतरफा जीत नहीं मिली है. दिल्ली में आप सत्ता से जरूर दूर हुई है लेकिन वोटों के मामले में बीजेपी से बहुत पीछे नहीं है. आप को बीजेपी से करीब पौने दो लाख वोट और तीन फीसदी ही कम वोट शेयर मिले हैं. 60.54 फीसदी मतदान में बीजेपी को 46.91 फीसदी, आप को 43.20 फीसदी और कांग्रेस को 6.31 फीसदी वोट मिले.

सड़क से सदन तक नए सिरे से जंग के आसार

केजरीवाल, सिसोदिया,जैन या भारद्वाज भले हार गए लेकिन कालकाजी विधानसभा सीट से आतिशी जीत गई हैं. रमेश बिधूड़ी को उन्होंने हरा दिया है. चुनाव जीतने के बाद आतिशी ने सोशल मीडिया पर संदेश लिखा कि यह जीतने का समय नहीं है बल्कि जंग का समय है. जंग शब्द पर जौर करने की जरूरत है. चुनाव के समय बीजेपी की तरफ से आतिशी के अपमान का मुद्दा जोर शोर से उठाया गया था लेकिन आतिशी अपनी वफादारी पर कायम रहीं. आतिशी आप का मजबूत महिला चेहरा हैं. अनशन करके और बीजेपी के खिलाफ कड़े से कड़े बयान देकर अपने इरादे साफ कर चुकी हैं. जाहिर है कि सड़क से लेकर सदन तक दिल्ली में कोहराम थमने वाला नहीं है. संघर्ष और संग्राम जारी रहने का पूरा अंदेशा है. आप के नेताओं की रणनीति साफ है कि जीतने वाले विधायक सदन के अंदर अपनी आवाज बुलंद करेंगे और जो हारे वे सड़क पर संघर्ष करेंगे.

केजरीवाल और सिसोदिया का संदेश समझें

नतीजे के बाद पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने विनम्रता से सोशल मीडिया पर सामने आकर अपनी हार स्वीकार कर ली और आगे क्या करेंगे- इसके बारे में भी स्पष्ट कर दिया. उन्होंने एक बार फिर अपनी पुरानी बातें दुहराई कि वो राजनीति करने नहीं आए हैं, राजनीति उनके लिए समाज सेवा का जरिया है. उन्होंने कहा कि दिल्ली की राजनीति आने वाले समय में रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएंगे और जनता के बीच फिर से जाएंगे, उनके दुख-सुख में शामिल होंगे, उनकी परेशानियां सुनेंगे, निजी तौर पर उनकी तकलीफें दूर करने का पूरा प्रयास करेंगे. इसी के साथ उन्होंने बीजेपी को बधाई देते हुए यह भी गुजारिश की है कि वे दिल्ली की जनता की उम्मीदों और आशाओं पर उतरें.

वहीं दिल्ली में शिक्षा माफिया से मुकाबला करने का नारा बुलंद करने वाले और दिल्ली के सरकारी स्कूलों का कायाकल्प करने की बात कहने वाले पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा है कि दिल्लीवालों ने बारह साल तक काम करने का मौका दिया और मैंने दिल्ली के बच्चों और शिक्षा के लिए काम किया. जनता के आदेश को स्वीकारते हुए आगे बढ़ूंगा और शिक्षा के लिए आजीवन काम करता रहूंगा.

बीजेपी के वादों पर रहेगी आप की नजर

गौरतलब है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने मुफ्त की कल्याणकारी योजनाओं की बदौलत सत्ता की बाजी मार ली थी. बीजेपी नेता पहले इन फ्री की योजनाओं को मुफ्तखोरी कहा करते थे. लेकिन बीजेपी ने रणनीति बनाई कि दिल्ली का किला अगर फतह करना है कि इन योजनाओं को मुफ्तखोरी कहना बंद करना होगा और आप सरकार की योजनाओं को आगे बढ़ाने के वादे करने होंगे, तभी आप को हराया जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा समेत तमाम दिग्गजों ने दिल्ली की फ्री की योजनाओं को जारी रखने का वादा किया, दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल ये कहते रहे कि बीजेपी आई तो ये योजनाएं बंद हो जाएंगी.

जाहिर है आम आदमी पार्टी के नेताओं की कड़ी नजर बीजेपी के किये हुये वादे पर रहेगी. फ्री बिजली-पानी, फ्री शिक्षा, फ्री इलाज, मोहल्ला क्लिनिक, सरकारी बसों में महिलाओं की फ्री यात्रा की सुविधाओं पर टीम केजरीवाल की नजर रहेगी. सदन के भीतर और सड़क पर आप अपने नेताओं के साथ तालमेल बनाकर रखेगी और संभव है अगले विधानसभा चुनाव की तस्वीर इस बात पर निर्भर करेगी कि वादे आखिरकार कितने पूरे हुए. यमुना का झाग खत्म हुआ या नहीं.

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