आजमगढ़ सीट पर फिर से निरहुआ और धर्मेंद्र यादव के बीच कांटे की टक्कर, जानें सियासी समीकरण
लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है।देश में इस बार बहुत कम ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां मुकाबला बहुत रोचक होने वाला है।अधिकतर जगहों पर जहां कोई बड़ा नाम चुनाव लड़ रहा है वहां उसका प्रतिद्वंद्वी बहुत समान्य है। इस कारण रोचक मुकाबले वाली सीटों की संख्या बहुत कम हैं।
लोकसभा चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश का अहम स्थान है। यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। यूपी में 19 अप्रैल से 1 जून तक 7 चरणों में चुनाव होगा। इसी में से पूर्वांचल की एक लोकसभा सीट आजमगढ़ भी है। आजमगढ़ पूर्वांचल की सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में से एक है और ऐसी सीट है जहां कांटें की टक्कर होने वाली है। भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से वर्तमान सांसद भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को फिर से टिकट दिया है तो वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आजमगढ़ सीट से अपने परिवार के ही धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाकर आजमगढ़ के मुकाबले को रोचक बना दिया है। अब आजमगढ़ देश की उन चुनिंदा सीटों में से एक हो गया है जहां का मुकाबला कांटें का होने वाला है।आइए समझते हैं इस सीट पर क्या है पूरा समीकरण।
क्या है आजमगढ़ सीट का इतिहास
आजमगढ़ लोकसभा सीट हमेशा से उत्तर प्रदेश की चर्चित सीट रही है। अगर बीते कुछ चुनावों की बात करें तो इस लोकसभा सीट पर 3 बार सपा, 3 बार बसपा और 2 भाजपा ने जीत दर्ज की है। इस सीट से 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव ने भी जीत दर्ज की थी। अखिलेश यादव ने 2019 में भाजपा के निरहुआ को लगभग 2 लाख 60 हजार वोट के बड़े अंतर से हराया था। हालांकि, अखिलेश यादव ने आगे जाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और सांसदी से इस्तीफा दे दिया था, जिससे 20022 में आजमगढ़ में उपचुनाव हुए और भाजपा से निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को हराया।
क्या है इस बार का समीकरण
भाजपा से निरहुआ ने 2022 में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर धर्मेंद्र यादव को लगभग 8 हजार वोटों से हराया था। यानी कि मुकाबला तब भी कांटें का था। तब बसपा ने गुड्डू जमाली को यहां पर अपना प्रत्याशी बनाया था। जमाली भी आजमगढ़ के चर्चित नेता थे और उन्होंने चुनाव में 2 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। इस बार खास बात ये है कि गुड्डू जमाली अब सपा में शामिल होकर एमएलसी बन चुके हैं। यानी धर्मेंद्र यादव को इस मामले में बढ़त है। इस कारण निरहुआ को जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है।
क्या है आजमगढ़ का जातीय समीकरण
आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में लगभग 18 लाख वोटर हैं,जिसमें यादव और मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा हैं। मुस्लिम यादव वोटर को जोड़कर M+Y का ये आंकड़ा लगभग 40 फीसदी से अधिक तक पहुंच जाता है।बीते चुनाव में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन है। इसके अलावा 50 फीसदी से ऊपर अन्य जातियों के वोटर हैं। माना जाता है कि क्षेत्र में दलित वोटर की संख्या लगभग 3 लाख है।
क्यों आसान नहीं है किसी की जीत
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर निरहुआ या धर्मेंद्र यादव में से सीधे तौर पर किसी को भी आगे दिखाना जल्दबाजी होगी। निरहुआ भी यादव हैं और वह अपने संसदीय क्षेत्र में बीते कुछ समय से काफी एक्टिव रहे हैं। भाजपा लगातार यादव-मुस्लिम वोट को अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा भाजपा के साथ इस बार ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान भी हैं। वहीं अगर बसपा यहां फिर से किसी पॉपुलर प्रत्याशी को टिकट देती है तो आजमगढ़ का मुकाबला एक बार फिर से काफी रोचक हो सकता है।
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