बदल रहा बुंदेलखंड,चुनौतियां कायम,हर घर नल और एक्सप्रेसवे से आसान हुई राह
नल बखरी में लगवा दो साजना,बात मोरी नहीं टालना,सासो भोरई आन जगावे,हमखो पानी खो पहुंचावें, आठ बजे पानी भर पावे,परो मोड़ा रोवत मेरी पालना।बुंदेलखंडी गीतों में अब पानी की परेशानी बयां करने वाले ऐसे स्वर सुनाई नहीं पड़ते हैं। इसका कारण सिर्फ पीढ़ीगत बदलाव ही नहीं है,बल्कि बुंदेलखंड की पूरी कहानी ही बदलनी शुरू हो गई है।अब बुंदेलखंड में पानी की किल्लत और सूखा सियासी मुद्दे गायब हो गए हैं। लगभग हर घर तक नल पहुंच गया है।
डकैतों का खात्मा भी हो चुका है।सिक्के का दूसरा पहलू अब भी उतना उजला नहीं हो सका है, जितने की उम्मीद लोगों को थी। बुंदेलखंड की सियासी फिजा में बेरोजगारी,अन्ना पशु और अवैध खनन की गूंज है।लोकसभा चुनाव के लिए बांदा,जालौन और हमीरपुर में भाजपा और सपा के प्रत्याशी मैदान में डट गए हैं।झांसी में भाजपा ने तो प्रत्याशी उतार दिए हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशियों का इंतजार हो रहा है।बुंदेलखंड में सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा आइए जानें।
फतेहपुर की सीमा को पार करते ही बुंदेली मिट्टी और हवा के झोंके में शुष्कता से दो चार होना पड़ता है।एक्सप्रेसवे और संपर्क मार्गों के नवनिर्माण के साथ कच्चे मकानों की संख्या घटने लगती है।साइकिल पर निकले बुजुर्ग के कंधे पर दो नाल वाली बंदूक भी नहीं नजर आई।पहले इस क्षेत्र में बंदूकें एक स्टेटस सिंबल के रूप में नजर आती थी।देर रात तक बुंदेलखंड की सड़कें गुलजार हैं तो चित्रकूट से मानिकपुर होते हुए सतना वाले रास्ते पर सिर पर गगरी लिए महिलाएं भी अब नजर नहीं आती हैं। हमीरपुर से कबरई-महोबा मार्ग पर क्रेशर हों या भरतकूप (कुआं),यहां की पत्थर तुड़ाई से निकली धूल आसपास के गांव के लोगों को बीमारी दे रही है। लोग इससे निजात पाना चाहते हैं। महोबा में पान किसान तकनीक के साथ पान बाजार बढ़ाने का मुद्दा उठाते हैं तो विभिन्न स्थानों पर बनी अनाज मंडियां अब मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं।
ललितपुर के लोग फार्मा पार्क को लेकर उत्साहित हैं, लेकिन यहां उन्हें रोजगार मिल पाएगा इस पर शंका जताते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति झांसी की भी है।यहां रोजगार के पर्याप्त साधन, उपचार एवं पोषण की व्यवस्था हो जाए तो बुंदेलखंड की पूरी कहानी बदल जाएगी।बुंदेलखंड की पहचान बदल रही है। यहां पानी का मुद्दा पुराना हो गया है। रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था हो जाए, छुट्टा पशुओं के लिए कुछ काम हुआ है, लेकिन अफसरों ने इसमें गंभीरता कम दिखाई है।
इटावा से चित्रकूट तक 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का निर्माण पूरा हो गया है। झांसी लिंक एक्सप्रेसवे और चित्रकूट लिंक एक्सप्रेसवे से जुड़े लिंक मार्गों ने गांवों तक पहुंच आसान कर दी है। ललितपुर में 1472 एकड़ क्षेत्रफल पर बल्क ड्रग पार्क के निर्माण के लिए प्रक्रिया शुरू हो गई। झांसी के पास 33 गांवों में बुंदेलखंड इंडस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी के गठन को मंजूरी भी मिल चुकी है। बुंदेलखंड के ऐतिहासिक स्थलों को एडॉप्ट ए हेरिटेज योजना के तहत विकसित किया जा रहा है।
750 करोड़ से बुंदेलखंड में वॉटर स्पोर्ट्स ईको टूरिज्म रोपवे हेलीपोर्ट बनेगा। बुंदेलखंड के 31 किलों को हेरिटेज होटल के रूप में विकसित करने की कवायद भी शुरू कर दी गई है। डिफेंस कॉरिडोर भी झांसी के लिए बड़ी उपलब्धि साबित हो रहा है। अर्जुन सहायक परियोजना, रतौली वियर परियोजना, भाओनी बांध परियोजना और मझगांव-चिल्ली स्प्रिंकलर परियोजना से सिंचाई में मदद मिलने लगी है।
बुंदेलखंड में तमाम कार्यों के बाद भी अभी रोजगार का मुद्दा कायम है। यहां के युवा कहते हैं कि अभी परियोजनाएं शुरू हुई हैं। इनका फायदा कुछ साल बाद मिलेगा। तब तक के लिए क्या करें।झांसी के रानीपुर में टेरी कॉटन उद्योग काफी बड़े स्तर पर था, लेकिन अब हाल बेहाल है।बुंदेलखंड के हर जिले में जिला महिला एवं पुरुष चिकित्सालय, 100 बेड के अस्पताल और मातृ शिशु केंद्र भी हैं। झांसी, बांदा और जालौन में मेडिकल कॉलेज हैं। इसके बाद भी यहां के लोगों को सुपर स्पेशियलिटी सुविधाओं के लिए कानपुर, लखनऊ, भोपाल या इंदौर जाना पड़ता है। जनवरी 2024 के बाल विकास विभाग के सर्वे में प्रदेश में चित्रकूट में सर्वाधिक 56 फीसदी और बांदा में 55 फीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए, जो एक चिंता का विषय है।
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