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मां छह तो बेटा दो बार रहा सांसद, नामांकन भरने का समय खत्म होते ही कयास और चर्चाएं समाप्त

वरुण गांधी के परिवार का पीलीभीत से रिश्ता 35 साल पुराना है। वर्ष 1989 में जनता दल से मेनका गांधी ने राजनीति की शुरुआत की थी और तराई के लोगों ने मेनका को सिर-आंखों पर बैठाया और तोहफे में जीत दी। भाजपा से टिकट कटने के बाद पीलीभीत की जनता को वरुण गांधी की इमोशनल चिट्ठी,कहा- मैं आपका था, हूं और रहूंगा


पीलीभीत की सरजमीं से मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी का पिछले 35 साल से चला आ रहा सियासी रिश्ता बुधवार को खत्म हो गया। 1989 के बाद यह पहली बार है कि दोनों में से किसी ने भी पीलीभीत सीट से पर्चा नहीं भरा। पीलीभीत मेनका गांधी का गढ़ कहा जाता है। ऐसे में अब भाजपा से चुनाव लड़ रहे जितिन प्रसाद के सामने उनकी राजनीतिक विरासत को सहेजना किसी चुनौती से कम नहीं होगा।

गजब का न्याय करती कानपुर कमिश्नरेट पुलिस. #vídeoviral

भाजपा की ओर से जितिन प्रसाद का नाम घोषित होने के बाद भी वरुण के निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन कराने की चर्चा होती रही। हालांकि, वरुण नामांकन के आखिरी दिन तक पीलीभीत नहीं आए और न ही उनका कोई संदेश समर्थकों को मिला। बुधवार को नामांकन का समय बीतने के साथ ही इस सीट से मेनका-वरुण का सियासी नाता भी टूट गया। इस चुनाव में मेनका गांधी भाजपा की ओर से सुल्तानपुर सीट से चुनाव लड़ रही हैं।

मेनका गांधी ने महज 33 साल की उम्र में वर्ष 1989 से पीलीभीत को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना और लोकसभा पहुंचीं। 1991 में राम लहर में वह भाजपा के परशुराम से महज 6923 वोटों से चुनाव हार गईं। इसके बाद 1996 से लेकर अब तक उन्हें यहां से जीत ही मिली, चाहें वह खुद मैदान में रहीं या बेटा वरुण। वर्ष 1991 में हुए चुनाव को छोड़ दें तो कोई ऐसा चुनाव नहीं हुआ, जिसमें मेनका गांधी के खाते में दो लाख से कम वोट आए हों।

9 में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे वरुण गांधी के हवाले कर दी और खुद आंवला चली गईं। मतदाताओं ने भी वरुण को हाथोंहाथ लिया और वह रिकॉर्ड मतों से जीते। वर्ष 2014 में मेनका फिर पीलीभीत से तो वरुण सुल्तानपुर से जीते। बाद में 2019 में वरुण फिर पीलीभीत से सांसद बने।

समर्थकों में आखिर तक बना रहा संशय
वरुण के समर्थकों में नामांकन के अंतिम समय तक संशय बना रहा। समर्थकों का कहना था कि उन्हें वरुण की ओर से कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ। क्या करना है, इसको लेकर वे अब भी असमंजस की स्थिति में है। वरुण गांधी के मीडिया प्रभारी एमआर मलिक ने भी कोई जानकारी होने से इन्कार किया है।
 

सवाल :  पद या किसी दूसरी सीट से उम्मीदवारी
वरुण की वजह से पीलीभीत प्रदेश में वीआईपी सीट बनी हुई है। 2009-2010 में वरुण भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भी रह चुके हैं। चर्चा है कि पार्टी वरुण को संगठन में कोई बड़ा पद दे सकती है। ऐसे में वरुण पीलीभीत में जितिन को जिताने के लिए अपील करते नजर आएं तो कोई हैरत नहीं होगी। चर्चा यह भी है कि वरुण को अवध क्षेत्र की किसी वीआईपी सीट से उतारा जा सकता है। यह सब कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं कि वरुण ने टिकट कटने के बाद भी न तो भाजपा छोड़ी है और न ही ऐसा कोई संकेत दिया है।
 

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि वरुण गांधी के सकारात्मक रुख का मैं स्वागत करता हूं। भाजपा प्रत्येक कार्यकर्ता के बारे में अच्छा सोचती है और वरुण गांधी के लिए भी बेहतर योजना है। वरुण गांधी को जल्द ही पार्टी बड़ी जिम्मेदारी सौंपेगी।

भारतीय जनता पार्टी से टिकट कटने के बाद पीलीभीत से सांसद वरुण गांधी अपनी लोकसभा की जनता के नाम भावनात्मक चिट्ठी लिखी है।वरुण गांधी के एक्स पर पोस्ट इस चिट्ठी में उनके पहली बार पीलीभीत आने से लेकर सांसद बनने तक, इस क्षेत्र की जनता से जुड़ाव का जिक्र है तो भविष्य को लेकर संदेश भी।

पीलीभीत वासियों को मेरा प्रणाम।आज जब मैं यह पत्र लिख रहा हूं, तो अनगिनत यादों ने मुझे भावुक कर दिया है। मुझे वो 3 साल का छोटा सा बच्चा याद आ रहा है जो अपनी मां की उंगली पकड़ कर 1983 में पहली बार पीलीभीत आया था, उसे कहां पता था एक दिन यह धरती उसकी कर्मभूमि और यहां के लोग उसका परिवार बन जाएंगे।

मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे वर्षों पीलीभीत की महान जनता की सेवा करने का मौका मिला। महज एक सांसद के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के तौर पर भी मेरी परवरिश और मेरे विकास में पीलीभीत से मिले आदर्श, सरलता और सहृदयता का बहुत बड़ा योगदान है। आपका प्रतिनिधि होना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान रहा है और मैंने हमेशा अपनी पूरी क्षमता से आपके हितों के लिए आवाज उठाई।

एक सांसद के तौर पर मेरा कार्यकाल भले समाप्त हो रहा हो, पर पीलीभीत से मेरा रिश्ता अंतिम सांस तक खर नहीं हो सकता। सांसद के रूप में नहीं, तो बेटे के तौर पर सही, मैं आजीवन आपकी सेवा के लिए प्रतिबद्ध हूँ और मेरे दरवाजे आपके लिये हमेशा पहले जैसे ही खुले रहेंगे। मैं राजनीति में आम आदमी की आवाज उठाने आया था और आज आपसे यही आशीर्वाद मांगता हूऊ कि सदैव यह कार्य करता रहूं, भले ही उसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े।

बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने 24 मार्च को देर रात जारी लिस्ट में सांसद वरुण गांधी का टिकट काटकर उनके स्थान पर लोक निर्माण विभाग मंत्री जितिन प्रसाद को प्रत्याशी घोषित किया है। टिकट कटने के बाद सांसद वरुण गांधी के समर्थकों में सन्नाटा सा पसर गया था। सांसद के निजी सचिव कमलकांत ने यहां पहुंचकर नामांकन पत्र के चार सेट खरीदे थे,जिसके बाद यह माना जा रहा था कि वरुण गांधी पीलीभीत लोकसभा से ही चुनाव लड़ेंगे।

टिकट कटने का 'राज' भी बता दिया वरुण के पत्र ने, ढाई साल पुरानी चिट्ठी से ऐसे जुड़ रहा नाता

भाजपा नेता वरुण गांधी ने गुरुवार को पीलीभीत के लोगों के नाम एक चट्ठी लिखी। वैसे तो चिट्ठी का पूरा मजमून यही है कि उनका पीलीभीत से बहुत करीबी नाता है और वह पीलीभीत के लोगों के लिए हमेशा खड़े रहेंगे। लेकिन इस चिट्ठी के अंत में वरुण गांधी ने एक लाइन में अपना वह दर्द भी बयां कर दिया, जिसे लेकर सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चाएं हो रही थीं। सियासी गलियारों में वरुण गांधी की गुरुवार को लिखी गई चिट्ठी और ढाई साल पहले लिखी गई चिट्ठी से सीधा नाता जोड़ा जा रहा है।

वरुण गांधी ने पीलीभीत के लोगों के लिए लिखी चिट्ठी में बहुत सी भावुक बातें लिखी हैं। इसी चिट्ठी में वरुण गांधी ने पीलीभीत से उनका टिकट क्यों कटा, इसका भी इशारों-इशारों में बखूबी जिक्र किया है। वरुण गांधी ने अपनी चिट्ठी में स्पष्ट लिखा है कि वह राजनीतिक जीवन में आम लोगों की समस्याओं का दर्द उठाने आए हैं। उन्होंने पीलीभीत की जनता को भरोसा दिलाया कि वह लोगों की समस्याओं और उनके दर्द को ऐसे ही उठाते रहेंगे। भले ही उसके लिए उन्हें 'कोई भी कीमत' क्यों न चुकानी पड़े। वरुण गांधी की चिट्ठी में उनका पीलीभीत से टिकट कटने का दर्द भी झलकता है।

दरअसल वरुण गांधी ने गुरुवार को लिखी चिट्ठी में जिस 'कीमत चुकाने' का जिक्र किया है, वह ढाई साल पहले प्रधानमंत्री को लिखी गई चिट्ठी से सीधे तौर पर जुड़ रही है। 20 नवंबर 2021 को वरुण गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में वरुण गांधी ने प्रधानमंत्री द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा का स्वागत किया था। इसके अलावा उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी तत्काल फैसला लेने के लिए कहा था। ताकि आंदोलनरत किसान अपने घरों को वापस लौट सकें। वरुण गांधी ने किसान आंदोलन में मारे गए सभी 700 किसानों के लिए एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा दिए जाने की भी मांग की थी। इसके अलावा उन्होंने लखीमपुर हिंसा मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी पर तत्काल कार्रवाई करने की भी मांग की थी।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वरुण गांधी की इस चिट्ठी में वही मांगें थीं, जो विपक्ष के नेता और किसान आंदोलन में भाग लेने वाले आंदोलनकारी कर रहे थे। यही वजह थी कि वरुण गांधी की चिट्ठी के बाद न सिर्फ केंद्रीय नेतृत्व बल्कि केंद्र सरकार के साथ उनका टकराव बढ़ गया था। वरुण गांधी ने सिर्फ चिट्ठी के माध्यम से ही केंद्र सरकार पर निशाना नहीं साधा,  बल्कि सोशल मीडिया पर भी वह हमलावर रहे। प्रधानमंत्री द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के अगले ही दिन ट्वीट कर वरुण गांधी ने कहा था कि देश के किसानों ने भीषण बारिश, तूफान और विपरीत मौसम का सामना करते हुए आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से जारी रखा, इसके लिए किसानों को बधाई दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि यदि कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला उचित समय पर कर लिया जाता, तो उन 700 किसानों की जान बचाई जा सकती थी। जिन्होंने इस आंदोलन की राह में अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

राजनीतिक जानकार टीबी सिंह कहते हैं कि फैसला तभी हो गया था कि वरुण गांधी को भाजपा फिलहाल आने वाले लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं देने वाली। हालांकि उसके बाद वरुण गांधी ने लगातार लोगों की समस्याओं को न सिर्फ उठाना शुरू किया बल्कि सरकारी क्रय केंद्रों समेत अन्य जगहों पर जाकर किसानों से मुलाकात शुरू की और उनकी समस्याओं को गिनाना शुरू किया। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक वरुण गांधी ने गुरुवार को जो चिट्ठी पीलीभीत के लोगों के लिए लिखी है, उसमें इशारों-इशारों में अपनी उन सभी आवाजों का जिक्र किया है, जिन्हें वह पहले उठाते रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने अपनी चिट्ठी की अंतिम लाइनों में न सिर्फ ऐसी आवाजों को लगातार उठाते रहने का जनता से वादा किया है, बल्कि कोई भी कीमत तक चुकाने की बात कही है। सियासी गलियारों में उस कीमत का सीधा नाता पीलीभीत में काटे गए उनके टिकट के तौर पर देखा जा रहा है।

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